Khoob ladi mardani – झाँसी की रानी पर कविता | Jhansi ki rani poem [Hindi]

आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे महान रानी लक्ष्मीबाई की, जिन्हें झाँसी की रानी भी कहा जाता है, और उनके ऊपर लिखी गई प्रसिद्ध कविता – Jhansi ki Rani Poem पर भी चर्चा करेंगे। वीर रानी लक्ष्मीबाई भारत के इतिहास की सबसे महान महिला थीं, यह कहा बिल्कुल गलत नहीं होगा। क्योंकि जब भारत में अंग्रेज़ों का राज था, तब रानी लक्ष्मीबाई ही थीं जिनसे अंग्रेज़ कप-कपाते थे।

उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनका असली नाम मणिकर्णिका था। लेकिन उन्हें मणिकर्णिका से ज्यादा रानी लक्ष्मीबाई या फिर झाँसी की रानी नाम से ज्यादा पहचाना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेज़ों के खिलाफ स्वतंत्रता की जंग जारी रखी थी

झाँसी की रानी की ज़िंदगी देशभक्ति और बलिदान का उदाहरण है। उन्होंने अपने देश के लिए सबकुछ त्याग दिया और एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी होने का सबूत दिया।

khub ladi mardani poem in hindi

Jhansi ki rani kavita एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जो हम सबने बचपन में काफी सुनी होगी, और हमारे स्कूलों की किताबों में भी इसका कई जगह जिक्र मिल जाता है। हम इस पोस्ट में Jhansi ki rani kavita पर नज़र डालेंगे और पूरी कविता को देखेंगे। लेकिन उससे पहले चलिए देखते हैं कि इस महान झाँसी की रानी कविता की कवित्री कौन है।

तो Jhansi ki rani poem की रचयिता है सुभद्रा कुमारी चौहान।

सुभद्रा कुमारी चौहान एक हिंदी कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह मुख्य रूप से अपनी कविताओं के ज़रिए स्वतंत्रता और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में लिखती थीं। उनका जन्म 16 अगस्त 1904 को हुआ था। और उनकी आज भी सबसे ज्यादा प्यारी और सबसे ज्यादा पसंद आने वाली कविता है Jhansi ki rani kavita। चलिए अब बिना देर किए झाँसी की रानी कविता की ओर नज़र डालते हैं। हम Jhansi ki rani poem के साथ-साथ आपको कविता की इमेजेज़ भी प्रदान करेंगे, जो आप अपने स्टेटस या स्टोरी पर लगा सकते हैं।

rani laxmi bai poem

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, 
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, 
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। 

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, 
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, 
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, 
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, 
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, 
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, 
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़। 

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

 हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, 
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, 
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में, 
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई, 
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, 
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई, 
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, 
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, 
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, 
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। 

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया, 
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, 
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया, 
राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। 

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात, 
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, 
उदयपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात? 
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। 

बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार, 
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, 
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार, 
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार’। 

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, 
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान, 
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान, 
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

 हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, 
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी, 
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी, 
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी, 

जबलपुर,कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, 
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, 
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, 
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। 

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में, 
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, 
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, 
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में। 

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, 
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार, 
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, 
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

 अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी, 
अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी, 
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी, 
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी। 

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय ! घिरी अब रानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार, 
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार, 
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार, 
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। 

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी, 
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी, 
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी, 
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

 दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, 
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी, 
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, 
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। 

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी, 
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

हम आशा करते हैं आपको रानी लक्ष्मीबाई की कविता पसंद आई होगी। उत्तर में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि झाँसी की रानी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं, और उनकी हिम्मत और साहस की दाद देनी पड़ेगी।

और यही कारण है कि आज भी वह हमारे दिलों में ज़िंदा हैं, और हम उन्हें आज भी Jhansi ki rani poem पढ़कर उन्हें याद करते हैं। और एक ख़ास धन्यवाद इस कविता की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को भी देना बनता है। क्योंकि उन्होंने काफी सुंदर तरीके से रानी लक्ष्मीबाई का वर्णन किया है, और वह इस Rani Laxmi Bai poem से अमर हो चुकी है।

धन्यवाद!

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