सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी के एक प्रमुख कवि माने जाते हैं। उन्हें छायावादी युग का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवि माना गया है। छायावादी युग उसे कहा गया है जो 1918-1936 में रोमांटिक कविताओं से मशगूल रहा। इस युग में ४ प्रमुख कवि उभरे और वो थे – महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और हमारे प्यारे सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। और आज की इस पोस्ट में हम उन्ही छायावादी युग के मुख्य कवि और हम सबके प्रिय सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की बात करेंगे और उनकी ज़िंदगी, रचनाएँ और कार्यशेत्र के बारे में समझेंगे।
नाम | सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) |
जन्म | 21 फरवरी 1896, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत |
मृत्यु | 15 अक्टूबर 1961, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, भारत |
जीवनकाल | 65 वर्ष |
पिता | पंडित रामसहाय त्रिपाठी |
पत्नी | मनोहरी देवी |
पुत्री | 1 |
कविताएँ | अणिमा, अनामिका, अपरा, अर्चना, आराधना, कुकुरमुत्ता, गीतगुंज इत्यादि |
उपन्यास | अप्सरा, अलका, इन्दुलेखा, काले कारनामे, चमेली, चोटी की पकड़, निरुपमा इत्यादि |
निबंध | चयन, चाबुक, प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, प्रबंध परिचय, बंगभाषा का उच्चारण, रवीन्द्र-कविता-कानन आदि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | कवि, लेखक |
जीवन परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में, सियासत से भरे महिषादल के एक गांव में 21 फरवरी 1896 को हुआ था। सूर्यकांत त्रिपाठी को ‘महाप्राद’ का नाम दिया गया था, लेकिन ज्यादातर लोग उन्हें ‘निराला’ नाम से जानते हैं। उनके गीतों की आजतक प्रशंसा की जाती है। निराला वैसे तो ज्यादा नहीं लेकिन हाई स्कूल तक पढ़े-लिखे थे। इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य और बादला की पढ़ाई खुद से ही की।
उनके पिता की एक छोटी सी नौकरी थी, जो की एक सिपाही की थी। उनकी माता का निधन तब हुआ था जब सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ केवल 3 साल के थे। और उन्हें उनके पिता को भी खोना पड़ा, जब वो सिर्फ 20 साल के थे। जब उनके पिता की मृत्यु हुई तो निराला को ही पूरे परिवार का बोझ उठाना पड़ा, जब वो 20 साल के थे। कुछ समय बाद माहवारी के कारण उनको उनके परिवार के और सदस्यों का भी साथ नहीं रहा और उनकी पत्नी, चाचा, भाभी और भाई का देहांत हो गया।
निराला का जीवन काफी कठिनाइयों भरा रहा और इसी जीवन में उन्होंने अपना नाम कमाने के लिए जीये जद्दोजहद की। 15 अक्टूबर 1961 को प्रयागराज में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का भी निधन हो गया और वो पूरी दुनिया को अपनी रचनाएं देकर रुखसत हो गए।
कार्यक्षेत्र
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपने पूरे जीवनकाल में हिंदी साहित्य के शेत्र में अपना कार्य किया है। वे भारत के बहुत बड़े लेखक, कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और संपादक थे। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अनेक कविताओं, निबंध, उपन्यास एवं कहानी की रचनाएं की. 1920 में उनकी पहली कविता ‘जन्मभूमि’ उस समय की प्रभा नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। फिर 1923 में पहला कविता संग्रह ‘अनामिका’ और पहला निबंध ‘बंग भाषा का उच्चारण’ मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ. निराला जी हिंदी साहित्य में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। उन्होंने अपने समकालीन कवियों से अलग कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया।
ऐसे ही, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपने पूरे जीवन में बहुत सी कविताएं, कहानियाँ, लेख, उपन्यास और निबंध लिखे। और पूरी दुनिया में खूब नाम कमाया। सूर्यकांत त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं के कारण एसी छाप छोड़ी, जो लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। निराला ने इतनी कठिनाइयों के बीच इतने शेत्रों में काम किया और सभी में बहुत ऊच्च स्थान प्राप्त किया है। चलिए हम समझते हैं कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने क्या-क्या रचनाएँ की हैं।
रचनाये
उन्होंने लगभग 1920 में अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने का काम शुरू कर दिया था और इसके बाद उन्होंने बहुत सारे लेख, कविताएं, उपन्यास और बहुत कुछ लिखा। उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जो काफी लोगों को आजतक पसंद है और उस समय भी लोगों के दिलों को खूब भायी थी, वो कविता है “जूही की कली”। चलिए हम सीधा ही देखते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की रचनाओं को।
काव्य संग्रह–
- अनामिका (1923)
- परिमल (1930)
- गीतिका (1936)
- अनामिका (द्वितीय)
- तुलसीदास (1939)
- कुकुरमुत्ता (1942)
- अणिमा (1943)
- बेला (1946)
- नये पत्ते (1946)
- अर्चना(1950)
- आराधना (1953)
- गीत कुंज (1954)
- सांध्य काकली
- अपरा (संचयन)
उपन्यास–
- अप्सरा (1931)
- अलका (1933)
- प्रभावती (1936)
- निरुपमा (1936)
- कुल्ली भाट (1938-39)
- बिल्लेसुर बकरिहा (1942)
- चोटी की पकड़ (1946)
- काले कारनामे (1950)
- चमेली
- इन्दुलेखा
- कहानी संग्रह
- लिली (1934)
- सखी (1935)
- सुकुल की बीवी (1941)
- चतुरी चमार (1945)
- देवी (1948)
निबंध–
- रवीन्द्र कविता कानन (1929)
- प्रबंध पद्म (1934)
- प्रबंध प्रतिमा (1940)
- चाबुक (1942)
- चयन (1957)
- संग्रह (1963)
कहानी संग्रह–
- लिली (1934)
- सखी (1935)
- सुकुल की बीवी (1941)
- चतुरी चमार (1945)
- देवी (1948)
निष्कर्ष
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ बेशक हमारे देश का एक बहुत बड़ा हीरा है। और वह भलाई आज हमारे साथ जीवित नहीं हो, मगर हमारे दिलों में जीवित है। उनकी रचनाएं आज भी हर कोई पढ़ना पसंद करता है। और उनके बारे में जानना भी पसंद करते हैं और आप शायद इसी लिए इस पोस्ट पर आए हैं। अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि हमें एसे इंसान को जितना हो सके सराहना चाहिए। क्योंकि निराला ने जितनी परेशानियों में अपना काम किया है, उतनी परेशानियों में काम करना बहुत मुश्किल है।
हम आशा करते हैं कि आपको हमारी यह सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के उपर पोस्ट काफी पसंद आई होगी। हम चाहते हैं कि आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और परिवारवालों के साथ बाँटें ताकि उन्हें भी निराला के बारे में जानकारी मिले। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप हमें नीचे कमेंट सेक्शन में बता सकते हैं। और अगर आपको इसमें कुछ कमी लगती है तो आप उसे भी कमेंट में लिखकर पूरा कर सकते हैं। आप हमारी और पोस्ट्स पर नज़र भी डाल सकते हैं।
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